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Saturday, 20 February 2016

मै उसकी अदाओं का आशिक,तुम कौन




तितलिओं पर सवार हो,उड़ती हुई आएगी वो,

गुलशनो से गुलों का अर्क लबों पे समेट लाएगी वो,

तड़पायेगी,तरसाएगी,और थोड़ा गुरुर में गरमाएगी वो,
चुपके से विरानो में, हल्के से कानो में शरमाएगी वो,

बहारों का बेशकीमती रंगों का लबादा लपेटे इठलाएगी वो,
वो जानती है, वो मेरी है, लेकिन फ़क़त जताएगी वो,

में आवारा हूँ,फिर भी पता परवाने का परिंदों से पूछेगी वो,
चाहे हवाओं के हालात बेकाबू हो,एक लम्हा जुदा ना रह पाएगी वो,

क़सक,तड़प,बेचैनी,जूनून,जस्बात और जवानी छलकाएगी वो,
स्त्रीलिंग है,अल्फ़ाज़ों से इज़हार नहीं कर पाएगी वो,

बस इशारों-इशारों में इश्क़े फ़रमान फरमाएगी वो,
बशर्ते "अज्ञात" ही आगाज़े बयाँ करे यही चाहेगी वो,
और मेरे खोखले ख्यालों से फिर “कविता” बन जाएगी वो...





मै उसकी अदाओं का आशिक,तुम कौन




तितलिओं पर सवार हो,उड़ती हुई आएगी वो,

गुलशनो से गुलों का अर्क लबों पे समेट लाएगी वो,

तड़पायेगी,तरसाएगी,और थोड़ा गुरुर में गरमाएगी वो,
चुपके से विरानो में, हल्के से कानो में शरमाएगी वो,

बहारों का बेशकीमती रंगों का लबादा लपेटे इठलाएगी वो,
वो जानती है, वो मेरी है, लेकिन फ़क़त जताएगी वो,

में आवारा हूँ,फिर भी पता परवाने का परिंदों से पूछेगी वो,
चाहे हवाओं के हालात बेकाबू हो,एक लम्हा जुदा ना रह पाएगी वो,

क़सक,तड़प,बेचैनी,जूनून,जस्बात और जवानी छलकाएगी वो,
स्त्रीलिंग है,अल्फ़ाज़ों से इज़हार नहीं कर पाएगी वो,

बस इशारों-इशारों में इश्क़े फ़रमान फरमाएगी वो,
बशर्ते "अज्ञात" ही आगाज़े बयाँ करे यही चाहेगी वो,
और मेरे खोखले ख्यालों से फिर “कविता” बन जाएगी वो...





मै उसकी अदाओं का आशिक,तुम कौन




तितलिओं पर सवार हो,उड़ती हुई आएगी वो,

गुलशनो से गुलों का अर्क लबों पे समेट लाएगी वो,

तड़पायेगी,तरसाएगी,और थोड़ा गुरुर में गरमाएगी वो,
चुपके से विरानो में, हल्के से कानो में शरमाएगी वो,

बहारों का बेशकीमती रंगों का लबादा लपेटे इठलाएगी वो,
वो जानती है, वो मेरी है, लेकिन फ़क़त जताएगी वो,

में आवारा हूँ,फिर भी पता परवाने का परिंदों से पूछेगी वो,
चाहे हवाओं के हालात बेकाबू हो,एक लम्हा जुदा ना रह पाएगी वो,

क़सक,तड़प,बेचैनी,जूनून,जस्बात और जवानी छलकाएगी वो,
स्त्रीलिंग है,अल्फ़ाज़ों से इज़हार नहीं कर पाएगी वो,

बस इशारों-इशारों में इश्क़े फ़रमान फरमाएगी वो,
बशर्ते "अज्ञात" ही आगाज़े बयाँ करे यही चाहेगी वो,
और मेरे खोखले ख्यालों से फिर “कविता” बन जाएगी वो...





मै उसकी अदाओं का आशिक,तुम कौन




तितलिओं पर सवार हो,उड़ती हुई आएगी वो,

गुलशनो से गुलों का अर्क लबों पे समेट लाएगी वो,

तड़पायेगी,तरसाएगी,और थोड़ा गुरुर में गरमाएगी वो,
चुपके से विरानो में, हल्के से कानो में शरमाएगी वो,

बहारों का बेशकीमती रंगों का लबादा लपेटे इठलाएगी वो,
वो जानती है, वो मेरी है, लेकिन फ़क़त जताएगी वो,

में आवारा हूँ,फिर भी पता परवाने का परिंदों से पूछेगी वो,
चाहे हवाओं के हालात बेकाबू हो,एक लम्हा जुदा ना रह पाएगी वो,

क़सक,तड़प,बेचैनी,जूनून,जस्बात और जवानी छलकाएगी वो,
स्त्रीलिंग है,अल्फ़ाज़ों से इज़हार नहीं कर पाएगी वो,

बस इशारों-इशारों में इश्क़े फ़रमान फरमाएगी वो,
बशर्ते "अज्ञात" ही आगाज़े बयाँ करे यही चाहेगी वो,
और मेरे खोखले ख्यालों से फिर “कविता” बन जाएगी वो...





"मै उसकी अदाओं का आशिक" तुम कौन ???


तितलिओं पर सवार हो,उड़ती हुई आएगी वो,
गुलशनो से गुलों का अर्क लबों पे समेट लाएगी वो,

तड़पायेगी,तरसाएगी,और थोड़ा गुरुर में गरमाएगी वो,
चुपके से विरानो में, हल्के से कानो में शरमाएगी वो,

बहारों का बेशकीमती रंगों का लबादा लपेटे इठलाएगी वो,
वो जानती है, वो मेरी है, लेकिन फ़क़त जताएगी वो,

में आवारा हूँ,फिर भी पता परवाने का परिंदों से पूछेगी वो,
चाहे हवाओं के हालात बेकाबू हो,एक लम्हा जुदा ना रह पाएगी वो,

क़सक,तड़प,बेचैनी,जूनून,जस्बात और जवानी छलकाएगी वो,
स्त्रीलिंग है,अल्फ़ाज़ों से इज़हार नहीं कर पाएगी वो,

बस इशारों-इशारों में इश्क़े फ़रमान फरमाएगी वो,
बशर्ते "अज्ञात" ही आगाज़े बयाँ करे यही चाहेगी वो,
और मेरे खोखले ख्यालों से फिर “कविता” बन जाएगी वो...


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Sunday, 4 March 2012

वो यूँही नही भीगने लगी,उसने कुछ तो सोचा होगा


शायद बारिशों ने उसके बदन को यूँ छुआ होगा,
एहसास-ऐ-इश्क भी कोई मंजर है यारों,
उसने कुछ तो सोचा होगा,
उसने कुछ तो सोचा होगा !
शायद निगाहों ने उसे इशारा किया होगा,
ख्वाब यूहीं नहीं पलते पलकों  पे  यारों,
उसने कुछ तो सोचा होगा,
उसने कुछ तो सोचा होगा !
शायद होटों ने उसे उकसाया होगा,
मुस्कराहट यूहीं नहीं छलती यारों,
उसने कुछ तो सोचा होगा,
उसने कुछ तो सोचा होगा !
शायद गुलशन ने उसे बहकाया होगा,
क्यूँ खुशबू फ़िदा है हवाओं पे यारों,
उसने कुछ तो सोचा होगा,
उसने कुछ तो सोचा होगा !
शायद इस "अज्ञात" पर उसे विशवास होगा,
वरना राहें भी बड़ी शातिर होती है यारों,
उसने कुछ तो सोचा होगा,

वो यूँही नही भीगने लगी,उसने कुछ तो सोचा होगा


शायद बारिशों ने उसके बदन को यूँ छुआ होगा,
एहसास-ऐ-इश्क भी कोई मंजर है यारों,
उसने कुछ तो सोचा होगा,
उसने कुछ तो सोचा होगा !
शायद निगाहों ने उसे इशारा किया होगा,
ख्वाब यूहीं नहीं पलते पलकों  पे  यारों,
उसने कुछ तो सोचा होगा,
उसने कुछ तो सोचा होगा !
शायद होटों ने उसे उकसाया होगा,
मुस्कराहट यूहीं नहीं छलती यारों,
उसने कुछ तो सोचा होगा,
उसने कुछ तो सोचा होगा !
शायद गुलशन ने उसे बहकाया होगा,
क्यूँ खुशबू फ़िदा है हवाओं पे यारों,
उसने कुछ तो सोचा होगा,
उसने कुछ तो सोचा होगा !
शायद इस "अज्ञात" पर उसे विशवास होगा,
वरना राहें भी बड़ी शातिर होती है यारों,
उसने कुछ तो सोचा होगा,

वो यूँही नही भीगने लगी,उसने कुछ तो सोचा होगा


शायद बारिशों ने उसके बदन को यूँ छुआ होगा,
एहसास-ऐ-इश्क भी कोई मंजर है यारों,
उसने कुछ तो सोचा होगा,
उसने कुछ तो सोचा होगा !
शायद निगाहों ने उसे इशारा किया होगा,
ख्वाब यूहीं नहीं पलते पलकों  पे  यारों,
उसने कुछ तो सोचा होगा,
उसने कुछ तो सोचा होगा !
शायद होटों ने उसे उकसाया होगा,
मुस्कराहट यूहीं नहीं छलती यारों,
उसने कुछ तो सोचा होगा,
उसने कुछ तो सोचा होगा !
शायद गुलशन ने उसे बहकाया होगा,
क्यूँ खुशबू फ़िदा है हवाओं पे यारों,
उसने कुछ तो सोचा होगा,
उसने कुछ तो सोचा होगा !
शायद इस "अज्ञात" पर उसे विशवास होगा,
वरना राहें भी बड़ी शातिर होती है यारों,
उसने कुछ तो सोचा होगा,

यूँही नही भीगने लगी...उसने कुछ तो सोचा होगा !


शायद बारिशों ने उसके बदन को यूँ छुआ होगा,
एहसास-ऐ-इश्क भी कोई मंजर है यारों,
उसने कुछ तो सोचा होगा,
उसने कुछ तो सोचा होगा !
शायद निगाहों ने उसे इशारा किया होगा,
ख्वाब यूहीं नहीं पलते पलकों  पे  यारों,
उसने कुछ तो सोचा होगा,
उसने कुछ तो सोचा होगा !
शायद होटों ने उसे उकसाया होगा,
मुस्कराहट यूहीं नहीं छलती यारों,
उसने कुछ तो सोचा होगा,
उसने कुछ तो सोचा होगा !
शायद गुलशन ने उसे बहकाया होगा,
क्यूँ खुशबू फ़िदा है हवाओं पे यारों,
उसने कुछ तो सोचा होगा,
उसने कुछ तो सोचा होगा !
शायद इस "अज्ञात" पर उसे विशवास होगा,
वरना राहें भी बड़ी शातिर होती है यारों,
उसने कुछ तो सोचा होगा,
उसने कुछ तो सोचा होगा.,,,,अरुण "अज्ञात" पंचोली

यूँही नही...उसने कुछ तो सोचा होगा !


शायद बारिशों ने उसके बदन को यूँ छुआ होगा,
एहसास-ऐ-इश्क भी कोई मंजर है यारों,
उसने कुछ तो सोचा होगा,
उसने कुछ तो सोचा होगा !
शायद निगाहों ने उसे इशारा किया होगा,
ख्वाब यूहीं नहीं पलते पलकों  पे  यारों,
उसने कुछ तो सोचा होगा,
उसने कुछ तो सोचा होगा !
शायद होटों ने उसे उकसाया होगा,
मुस्कराहट यूहीं नहीं छलती यारों,
उसने कुछ तो सोचा होगा,
उसने कुछ तो सोचा होगा !
शायद गुलशन ने उसे बहकाया होगा,
क्यूँ खुशबू फ़िदा है हवाओं पे यारों,
उसने कुछ तो सोचा होगा,
उसने कुछ तो सोचा होगा !
शायद इस "अज्ञात" पर उसे विशवास होगा,
वरना राहें भी बड़ी शातिर होती है यारों,
उसने कुछ तो सोचा होगा,
उसने कुछ तो सोचा होगा.,,,,अरुण "अज्ञात" पंचोली

यूँही नही...उसने कुछ तो सोचा होगा !


शायद बारिशों ने उसके बदन को यूँ छुआ होगा,
एहसास-ऐ-इश्क भी कोई मंजर है यारों,
उसने कुछ तो सोचा होगा,
उसने कुछ तो सोचा होगा !
शायद निगाहों ने उसे इशारा किया होगा,
ख्वाब यूहीं नहीं पलते पलकों  पे  यारों,
उसने कुछ तो सोचा होगा,
उसने कुछ तो सोचा होगा !
शायद होटों ने उसे उकसाया होगा,
मुस्कराहट यूहीं नहीं छलती यारों,
उसने कुछ तो सोचा होगा,
उसने कुछ तो सोचा होगा !
शायद गुलशन ने उसे बहकाया होगा,
क्यूँ खुशबू फ़िदा है हवाओं पे यारों,
उसने कुछ तो सोचा होगा,
उसने कुछ तो सोचा होगा !
शायद इस "अज्ञात" पर उसे विशवास होगा,
वरना राहें भी बड़ी शातिर होती है यारों,
उसने कुछ तो सोचा होगा,
उसने कुछ तो सोचा होगा.,,,,अरुण "अज्ञात" पंचोली

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