Monday 3 December 2012

परछाई,महबूबा यूँही नहीं तुम पर मरेगी



एक दिन परछाइयां जरुर बोलेगी,

अनल बर्फ के आंसू जरुर घोलेगी,
समीर को गिला शिकवा होगा,
ना बदरिया का कोई सिलसिला होगा | 

जब ये कायनात डग-मग डोलेगी,
फुर से चिड़िया दाना चुगकर,
खुले आसमां में छम-छम तेरेगी,
तुम ताकते रहना नदी किनारे,
मछली सारे रजिया के राज खोलेगी |

कलियों की कहानी पुरानी हो गई,
अब गलियों में जवानी दीवानी हो गई,
शबनम से अब हाला नहीं भरेगी,
शराबियों से अब शराब नहीं डरेगी |


तुम आइना क्यों देखते हो-
महबूबा युहीं नहीं तुम पर मरेगी,
थोड़ी घड़ियाँ थामकर चलो यारों,
इनकी कदम-कदम पर जरुरत पड़ेगी |

एक दिन परछाइयां जरुर बोलेगी,
अनल बर्फ के आंसू जरुर घोलेगी 

परछाई,महबूबा यूँही नहीं तुम पर मरेगी



एक दिन परछाइयां जरुर बोलेगी,

अनल बर्फ के आंसू जरुर घोलेगी,
समीर को गिला शिकवा होगा,
ना बदरिया का कोई सिलसिला होगा | 

जब ये कायनात डग-मग डोलेगी,
फुर से चिड़िया दाना चुगकर,
खुले आसमां में छम-छम तेरेगी,
तुम ताकते रहना नदी किनारे,
मछली सारे रजिया के राज खोलेगी |

कलियों की कहानी पुरानी हो गई,
अब गलियों में जवानी दीवानी हो गई,
शबनम से अब हाला नहीं भरेगी,
शराबियों से अब शराब नहीं डरेगी |


तुम आइना क्यों देखते हो-
महबूबा युहीं नहीं तुम पर मरेगी,
थोड़ी घड़ियाँ थामकर चलो यारों,
इनकी कदम-कदम पर जरुरत पड़ेगी |

एक दिन परछाइयां जरुर बोलेगी,
अनल बर्फ के आंसू जरुर घोलेगी 

परछाई,महबूबा यूँही नहीं तुम पर मरेगी



एक दिन परछाइयां जरुर बोलेगी,

अनल बर्फ के आंसू जरुर घोलेगी,
समीर को गिला शिकवा होगा,
ना बदरिया का कोई सिलसिला होगा | 

जब ये कायनात डग-मग डोलेगी,
फुर से चिड़िया दाना चुगकर,
खुले आसमां में छम-छम तेरेगी,
तुम ताकते रहना नदी किनारे,
मछली सारे रजिया के राज खोलेगी |

कलियों की कहानी पुरानी हो गई,
अब गलियों में जवानी दीवानी हो गई,
शबनम से अब हाला नहीं भरेगी,
शराबियों से अब शराब नहीं डरेगी |


तुम आइना क्यों देखते हो-
महबूबा युहीं नहीं तुम पर मरेगी,
थोड़ी घड़ियाँ थामकर चलो यारों,
इनकी कदम-कदम पर जरुरत पड़ेगी |

एक दिन परछाइयां जरुर बोलेगी,
अनल बर्फ के आंसू जरुर घोलेगी 

"परछाई" महबूबा यूँही नहीं तुम पर मरेगी !



एक दिन परछाइयां जरुर बोलेगी,
अनल बर्फ के आंसू जरुर घोलेगी,
समीर को गिला शिकवा होगा,
ना बदरिया का कोई सिलसिला होगा | 

जब ये कायनात डग-मग डोलेगी,
फुर से चिड़िया दाना चुगकर,
खुले आसमां में छम-छम तेरेगी,
तुम ताकते रहना नदी किनारे,
मछली सारे रजिया के राज खोलेगी |

कलियों की कहानी पुरानी हो गई,
अब गलियों में जवानी दीवानी हो गई,
शबनम से अब हाला नहीं भरेगी,
शराबियों से अब शराब नहीं डरेगी |


तुम आइना क्यों देखते हो-
महबूबा युहीं नहीं तुम पर मरेगी,
थोड़ी घड़ियाँ थामकर चलो यारों,
इनकी कदम-कदम पर जरुरत पड़ेगी |

एक दिन परछाइयां जरुर बोलेगी,
अनल बर्फ के आंसू जरुर घोलेगी !!!
.....अरुण "अज्ञात"

"परछाई" महबूबा यूँही नहीं तुम पर मरेगी !



एक दिन परछाइयां जरुर बोलेगी,
अनल बर्फ के आंसू जरुर घोलेगी,
समीर को गिला शिकवा होगा,
ना बदरिया का कोई सिलसिला होगा | 

जब ये कायनात डग-मग डोलेगी,
फुर से चिड़िया दाना चुगकर,
खुले आसमां में छम-छम तेरेगी,
तुम ताकते रहना नदी किनारे,
मछली सारे रजिया के राज खोलेगी |

कलियों की कहानी पुरानी हो गई,
अब गलियों में जवानी दीवानी हो गई,
शबनम से अब हाला नहीं भरेगी,
शराबियों से अब शराब नहीं डरेगी |


तुम आइना क्यों देखते हो-
महबूबा युहीं नहीं तुम पर मरेगी,
थोड़ी घड़ियाँ थामकर चलो यारों,
इनकी कदम-कदम पर जरुरत पड़ेगी |

एक दिन परछाइयां जरुर बोलेगी,
अनल बर्फ के आंसू जरुर घोलेगी !!!
.....अरुण "अज्ञात"

"परछाई" महबूबा यूँही नहीं तुम पर मरेगी !



एक दिन परछाइयां जरुर बोलेगी,
अनल बर्फ के आंसू जरुर घोलेगी,
समीर को गिला शिकवा होगा,
ना बदरिया का कोई सिलसिला होगा | 

जब ये कायनात डग-मग डोलेगी,
फुर से चिड़िया दाना चुगकर,
खुले आसमां में छम-छम तेरेगी,
तुम ताकते रहना नदी किनारे,
मछली सारे रजिया के राज खोलेगी |

कलियों की कहानी पुरानी हो गई,
अब गलियों में जवानी दीवानी हो गई,
शबनम से अब हाला नहीं भरेगी,
शराबियों से अब शराब नहीं डरेगी |


तुम आइना क्यों देखते हो-
महबूबा युहीं नहीं तुम पर मरेगी,
थोड़ी घड़ियाँ थामकर चलो यारों,
इनकी कदम-कदम पर जरुरत पड़ेगी |

एक दिन परछाइयां जरुर बोलेगी,
अनल बर्फ के आंसू जरुर घोलेगी !!!
.....अरुण "अज्ञात"

Friday 20 July 2012

जाने क्यूँ ये दर्द,मीठा-मीठा-सा लगता है



जाने क्यूँ ये दर्द, मीठा-मीठा -सा लगता है
हर ज़ख्म पर कोई, मिश्री घोल रहा हो जैसे
अपने ही आंसुओं पर, दरिया बन गई है ये आँखें
हर नज़र में कोई शख्स,शबनम टटोल रहा हो जैसे
अपनों का कारवां अपनी ही नब्ज़ में शूल सा लगता है
         कतरा कतरा यूँ घुट-घुटकर खुदी को ज़ार-ज़ार कर रहा हो जैसे
ऐ जहां वालों अब तो विराना ही अपना ताजमहल लगता है
                      शीशों के घरोंदो में दम साँसों का,बार-बार लुट रहा हो जैसे !


जाने क्यूँ ये दर्द,मीठा-मीठा-सा लगता है



जाने क्यूँ ये दर्द, मीठा-मीठा -सा लगता है
हर ज़ख्म पर कोई, मिश्री घोल रहा हो जैसे
अपने ही आंसुओं पर, दरिया बन गई है ये आँखें
हर नज़र में कोई शख्स,शबनम टटोल रहा हो जैसे
अपनों का कारवां अपनी ही नब्ज़ में शूल सा लगता है
         कतरा कतरा यूँ घुट-घुटकर खुदी को ज़ार-ज़ार कर रहा हो जैसे
ऐ जहां वालों अब तो विराना ही अपना ताजमहल लगता है
                      शीशों के घरोंदो में दम साँसों का,बार-बार लुट रहा हो जैसे !


जाने क्यूँ ये दर्द,मीठा-मीठा-सा लगता है



जाने क्यूँ ये दर्द, मीठा-मीठा -सा लगता है
हर ज़ख्म पर कोई, मिश्री घोल रहा हो जैसे
अपने ही आंसुओं पर, दरिया बन गई है ये आँखें
हर नज़र में कोई शख्स,शबनम टटोल रहा हो जैसे
अपनों का कारवां अपनी ही नब्ज़ में शूल सा लगता है
         कतरा कतरा यूँ घुट-घुटकर खुदी को ज़ार-ज़ार कर रहा हो जैसे
ऐ जहां वालों अब तो विराना ही अपना ताजमहल लगता है
                      शीशों के घरोंदो में दम साँसों का,बार-बार लुट रहा हो जैसे !


कश्मकश

"कश्मकश"



जाने क्यूँ ये दर्द, मीठा-मीठा -सा लगता है,,,
हर ज़ख्म पर कोई, मिश्री घोल रहा हो जैसे,,,,
अपने ही आंसुओं पर, दरिया बन गई है ये आँखें,,,,
हर नज़र में कोई शख्स,शबनम टटोल रहा हो जैसे,,,
अपनों का कारवां अपनी ही नब्ज़ में शूल सा लगता है,,,
         कतरा कतरा यूँ घुट-घुटकर खुदी को ज़ार-ज़ार कर रहा हो जैसे,,,,
ऐ जहां वालों अब तो विराना ही अपना ताजमहल लगता है,,,,
                      शीशों के घरोंदो में दम साँसों का,बार-बार लुट रहा हो जैसे ,,,,,,,,,,,अरुण"अज्ञात"


कश्मकश

"कश्मकश"



जाने क्यूँ ये दर्द, मीठा-मीठा -सा लगता है,,,
हर ज़ख्म पर कोई, मिश्री घोल रहा हो जैसे,,,,
अपने ही आंसुओं पर, दरिया बन गई है ये आँखें,,,,
हर नज़र में कोई शख्स,शबनम टटोल रहा हो जैसे,,,
अपनों का कारवां अपनी ही नब्ज़ में शूल सा लगता है,,,
         कतरा कतरा यूँ घुट-घुटकर खुदी को ज़ार-ज़ार कर रहा हो जैसे,,,,
ऐ जहां वालों अब तो विराना ही अपना ताजमहल लगता है,,,,
                      शीशों के घरोंदो में दम साँसों का,बार-बार लुट रहा हो जैसे ,,,,,,,,,,,अरुण"अज्ञात"


कश्मकश

"कश्मकश"



जाने क्यूँ ये दर्द, मीठा-मीठा -सा लगता है,,,
हर ज़ख्म पर कोई, मिश्री घोल रहा हो जैसे,,,,
अपने ही आंसुओं पर, दरिया बन गई है ये आँखें,,,,
हर नज़र में कोई शख्स,शबनम टटोल रहा हो जैसे,,,
अपनों का कारवां अपनी ही नब्ज़ में शूल सा लगता है,,,
         कतरा कतरा यूँ घुट-घुटकर खुदी को ज़ार-ज़ार कर रहा हो जैसे,,,,
ऐ जहां वालों अब तो विराना ही अपना ताजमहल लगता है,,,,
                      शीशों के घरोंदो में दम साँसों का,बार-बार लुट रहा हो जैसे ,,,,,,,,,,,अरुण"अज्ञात"


Sunday 6 May 2012

कोका कोला से मछलियों को खट्टे डकार आते है

                                      
                                     
                                        आसमाँ से हल्का हनीमून टपकता है,

                                   फिर भी धरती पे प्यासा शराबी है क्यूँ?

                                         दिन के तड़के में देखो सूरज पिघलता है,

                                          फिर भी चमगादड़ चाँदनी से परेशाँ है क्यूँ?

                                डोक्टर दांतों में कोलगेट की कमी बताता है,

                               फिर भी खाबों में जुलाबों के निशाँ है क्यूँ?

                        पडोसी को परदेसी की पत्नी पराई लगती है,

                      फिर भी बारिश भिकारी पे मेहरबाँ है क्यूँ?

                              तुफानो में चुडेल जलती जुल्फें सुखाती है,

                              फिर भी प्रधानमंत्री की बेटी जवाँ है क्यूँ?

                                     पश्चिम में पैरों का पसीना नाक से बहता है,

                                     फिर भी सुहागरात से परछाई इतनी हैराँ है क्यूँ?

                               सांप के सुन्दर ससुर को सौतेली माँ सताती है,

                              फिर भी समंदर की दाड़ी में टुटा तिनका है क्यूँ?

                    चुल्लू भर पानी,सारे सागर पे भारी पड़ता है,

                   फिर भी शबनम की बूंदों से पतंगा नहाता है क्यूँ?

           यमराज मुर्दे की मौत पे अपनी नसबंदी करवाता है,

          फिर भी चूहा थूंक से ही लिफ़ाफ़े पे टिकिट चिपकता है क्यूँ?
                         झींगुर के साथ लंगूर अपनी औकात दिखाता है,

                        फिर भी शतरंज की शय से फटा प्यादे का गिरेबाँ है क्यूँ?

                        कोका कोला से मछलियों को खट्टे डकार आते है,

                       फिर भी भैंस के दूध से एड्स ठीक हो जाता है क्यूँ? 
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