तितलिओं पर सवार हो,उड़ती हुई आएगी वो,
गुलशनो से गुलों का अर्क लबों पे समेट लाएगी वो,
तड़पायेगी,तरसाएगी,और थोड़ा गुरुर में गरमाएगी वो,
चुपके से विरानो में, हल्के से कानो में शरमाएगी वो,
बहारों का बेशकीमती रंगों का लबादा लपेटे इठलाएगी वो,
वो जानती है, वो मेरी है, लेकिन फ़क़त जताएगी वो,
में आवारा हूँ,फिर भी पता परवाने का परिंदों से पूछेगी वो,
चाहे हवाओं के हालात बेकाबू हो,एक लम्हा जुदा ना रह पाएगी वो,
क़सक,तड़प,बेचैनी,जूनून,जस्बात और जवानी छलकाएगी वो,
स्त्रीलिंग है,अल्फ़ाज़ों से इज़हार नहीं कर पाएगी वो,
बस इशारों-इशारों में इश्क़े फ़रमान फरमाएगी वो,
बशर्ते "अज्ञात" ही आगाज़े बयाँ करे यही चाहेगी वो,
और मेरे खोखले ख्यालों से फिर “कविता” बन जाएगी वो...
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