Saturday 15 October 2016

प्राचीन शासक और 21वी सदी के नेता का राजनीतिक नाता

Indian Politicians
प्राचीन राजा-महाराजाओं से लेकर मुग़ल साम्राज्य तक राजाओं के शासन करने की शैली या तो तानशाही रही है या प्रजाहितेशी रही है | किन्तु दोनों ही पहलुओं में युद्ध करके या संधि करके शासक अपना शासन जनता पर किया करते थे | एक और मजे की बात यह है कि राजा का पुत्र ही अधिकाँशतः राज्य का अगला उत्तराधिकारी होता था और इसी वंशानुगत राजनीति के कारण जनता के पास और कोई विकल्प नहीं हुआ करता था और न ही चुनाव जैसी कोई पद्धति | एक और ख़ास बात थी इन राजाओं के शासनकाल में कि ये राजा अपने मान-सम्मान और शर्तों के लिए अपना सर्वस्व त्याग देते थे मगर अपनी शर्तों और कसमों से विमुख नहीं होते थे |


इतिहास पढ़ते-पढ़ते हम सभी इतना तो जान ही गये है कि राजनीति किस चिड़िया का नाम है ? और यूँ भी हमारी प्राथमिक शिक्षा के दो अभिन्न विषय जो कि हम सभी पड़ते है एक इतिहास और दूसरा नागरिक शास्त्र (राजनीति शास्त्र) | और आज के इस बदलते राजनितिक परिवेश में बच्चा-बच्चा तकनीकी और दूरसंचार के कारण अपने देश की राजनीति को बहुत ही करीब से समझ और देख रहा है | इस इक्कीसवीं सदी में शिक्षित राजनीतिज्ञ का जब से राजनीति में पदार्पण हुआ है तब से “काला अक्षर भेंस बराबर” वाले राजनेताओं की सिट्टी-पिट्टी गुम हो गई है |

लेकिन क्या आज की आधुनिक राजीनीति जनहित,देशहित और “परहित सरस धर्म नहिं” भाई पर आधारित है ? बेशक, बिलकुल नहीं और ना ही पहले थी | और यह कहना कतई गलत नहीं होगा कि आज की आधुनिक राजनीति महज मुख़ और मुखौटे की राजनीति बन गई है जहाँ न मान-सम्मान है, न इमानदारी की कोई खान है, और वादा खिलाफ़ी तो चरम पर है | शान में गुस्ताखी तो जैसे फ़ेशन बन गया है |

               Video Source-Praveen Sharma Director Kurukshetra Consultancy


एक कहावत और इस आधुनिक राजनीति के परिदृश्य में सार्थक होती है कि “झूठ बोलो, जल्दी बोलो और जोर से बोलो” और इसी कर्मकांड में आधुनिक नेताओं को महारत हासिल हो गई है | ये कहना भी गलत ना होगा कि मुखमाया अपनाकर आज एरे-गेरे नत्थूखेरे भी सत्ता के शासक हो गए और बचे-कुचे सफ़ेदपोश चटोरे-चापलूस हो गए | अब मुद्दे की बात यह है की जनता का माई-बाप कौन? कहते है जनता तो जनार्दन होती है मगर हमेशा चुनावों में गुमराह रहती है और कोई न कोई टोपीधारी, सफ़ेद बगुला मौका देख के चौका मार जाता है और जनता हर बार ख्याली पुलाव खाकर अगले पांच साल के लिए फिर सो जाती है |

इस आधुनिक राजनीति ने आज व्यक्तिगत राजनीति का रूप ले लिया है हालांकि नारे जरुर ऐसे लगते है कि “अबकी बार ये सरकार, अबकी बार वो सरकार” मगर हर बार सरकार बेकार-ऐसा जनता हर बार, बार-बार कहती है | समसामयिक तौर पर कुल मिलाकर इस आधुनिक राजनीति के परिदृश्य को शब्दों में परिभाषित नहीं किया जा सकता और ना ही किसी निष्कर्ष पर पहुंचा जा सकता है, एक लेखक होने के नाते बस इतना कहना “Feel Good हो कि भय्या ये तो मदारी का खेल है, कभी बंदर को देखो, कभी मदारी को देखो और पैसा फेंको तमाशा देखो |


शब्द्नाद -@ज्ञात

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Indian Politicians
प्राचीन राजा-महाराजाओं से लेकर मुग़ल साम्राज्य तक राजाओं के शासन करने की शैली या तो तानशाही रही है या प्रजाहितेशी रही है | किन्तु दोनों ही पहलुओं में युद्ध करके या संधि करके शासक अपना शासन जनता पर किया करते थे | एक और मजे की बात यह है कि राजा का पुत्र ही अधिकाँशतः राज्य का अगला उत्तराधिकारी होता था और इसी वंशानुगत राजनीति के कारण जनता के पास और कोई विकल्प नहीं हुआ करता था और न ही चुनाव जैसी कोई पद्धति | एक और ख़ास बात थी इन राजाओं के शासनकाल में कि ये राजा अपने मान-सम्मान और शर्तों के लिए अपना सर्वस्व त्याग देते थे मगर अपनी शर्तों और कसमों से विमुख नहीं होते थे |


इतिहास पढ़ते-पढ़ते हम सभी इतना तो जान ही गये है कि राजनीति किस चिड़िया का नाम है ? और यूँ भी हमारी प्राथमिक शिक्षा के दो अभिन्न विषय जो कि हम सभी पड़ते है एक इतिहास और दूसरा नागरिक शास्त्र (राजनीति शास्त्र) | और आज के इस बदलते राजनितिक परिवेश में बच्चा-बच्चा तकनीकी और दूरसंचार के कारण अपने देश की राजनीति को बहुत ही करीब से समझ और देख रहा है | इस इक्कीसवीं सदी में शिक्षित राजनीतिज्ञ का जब से राजनीति में पदार्पण हुआ है तब से “काला अक्षर भेंस बराबर” वाले राजनेताओं की सिट्टी-पिट्टी गुम हो गई है |

लेकिन क्या आज की आधुनिक राजीनीति जनहित,देशहित और “परहित सरस धर्म नहिं” भाई पर आधारित है ? बेशक, बिलकुल नहीं और ना ही पहले थी | और यह कहना कतई गलत नहीं होगा कि आज की आधुनिक राजनीति महज मुख़ और मुखौटे की राजनीति बन गई है जहाँ न मान-सम्मान है, न इमानदारी की कोई खान है, और वादा खिलाफ़ी तो चरम पर है | शान में गुस्ताखी तो जैसे फ़ेशन बन गया है |

               Video Source-Praveen Sharma Director Kurukshetra Consultancy


एक कहावत और इस आधुनिक राजनीति के परिदृश्य में सार्थक होती है कि “झूठ बोलो, जल्दी बोलो और जोर से बोलो” और इसी कर्मकांड में आधुनिक नेताओं को महारत हासिल हो गई है | ये कहना भी गलत ना होगा कि मुखमाया अपनाकर आज एरे-गेरे नत्थूखेरे भी सत्ता के शासक हो गए और बचे-कुचे सफ़ेदपोश चटोरे-चापलूस हो गए | अब मुद्दे की बात यह है की जनता का माई-बाप कौन? कहते है जनता तो जनार्दन होती है मगर हमेशा चुनावों में गुमराह रहती है और कोई न कोई टोपीधारी, सफ़ेद बगुला मौका देख के चौका मार जाता है और जनता हर बार ख्याली पुलाव खाकर अगले पांच साल के लिए फिर सो जाती है |

इस आधुनिक राजनीति ने आज व्यक्तिगत राजनीति का रूप ले लिया है हालांकि नारे जरुर ऐसे लगते है कि “अबकी बार ये सरकार, अबकी बार वो सरकार” मगर हर बार सरकार बेकार-ऐसा जनता हर बार, बार-बार कहती है | समसामयिक तौर पर कुल मिलाकर इस आधुनिक राजनीति के परिदृश्य को शब्दों में परिभाषित नहीं किया जा सकता और ना ही किसी निष्कर्ष पर पहुंचा जा सकता है, एक लेखक होने के नाते बस इतना कहना “Feel Good हो कि भय्या ये तो मदारी का खेल है, कभी बंदर को देखो, कभी मदारी को देखो और पैसा फेंको तमाशा देखो |


शब्द्नाद -@ज्ञात

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Indian Politicians
प्राचीन राजा-महाराजाओं से लेकर मुग़ल साम्राज्य तक राजाओं के शासन करने की शैली या तो तानशाही रही है या प्रजाहितेशी रही है | किन्तु दोनों ही पहलुओं में युद्ध करके या संधि करके शासक अपना शासन जनता पर किया करते थे | एक और मजे की बात यह है कि राजा का पुत्र ही अधिकाँशतः राज्य का अगला उत्तराधिकारी होता था और इसी वंशानुगत राजनीति के कारण जनता के पास और कोई विकल्प नहीं हुआ करता था और न ही चुनाव जैसी कोई पद्धति | एक और ख़ास बात थी इन राजाओं के शासनकाल में कि ये राजा अपने मान-सम्मान और शर्तों के लिए अपना सर्वस्व त्याग देते थे मगर अपनी शर्तों और कसमों से विमुख नहीं होते थे |


इतिहास पढ़ते-पढ़ते हम सभी इतना तो जान ही गये है कि राजनीति किस चिड़िया का नाम है ? और यूँ भी हमारी प्राथमिक शिक्षा के दो अभिन्न विषय जो कि हम सभी पड़ते है एक इतिहास और दूसरा नागरिक शास्त्र (राजनीति शास्त्र) | और आज के इस बदलते राजनितिक परिवेश में बच्चा-बच्चा तकनीकी और दूरसंचार के कारण अपने देश की राजनीति को बहुत ही करीब से समझ और देख रहा है | इस इक्कीसवीं सदी में शिक्षित राजनीतिज्ञ का जब से राजनीति में पदार्पण हुआ है तब से “काला अक्षर भेंस बराबर” वाले राजनेताओं की सिट्टी-पिट्टी गुम हो गई है |

लेकिन क्या आज की आधुनिक राजीनीति जनहित,देशहित और “परहित सरस धर्म नहिं” भाई पर आधारित है ? बेशक, बिलकुल नहीं और ना ही पहले थी | और यह कहना कतई गलत नहीं होगा कि आज की आधुनिक राजनीति महज मुख़ और मुखौटे की राजनीति बन गई है जहाँ न मान-सम्मान है, न इमानदारी की कोई खान है, और वादा खिलाफ़ी तो चरम पर है | शान में गुस्ताखी तो जैसे फ़ेशन बन गया है |

               Video Source-Praveen Sharma Director Kurukshetra Consultancy


एक कहावत और इस आधुनिक राजनीति के परिदृश्य में सार्थक होती है कि “झूठ बोलो, जल्दी बोलो और जोर से बोलो” और इसी कर्मकांड में आधुनिक नेताओं को महारत हासिल हो गई है | ये कहना भी गलत ना होगा कि मुखमाया अपनाकर आज एरे-गेरे नत्थूखेरे भी सत्ता के शासक हो गए और बचे-कुचे सफ़ेदपोश चटोरे-चापलूस हो गए | अब मुद्दे की बात यह है की जनता का माई-बाप कौन? कहते है जनता तो जनार्दन होती है मगर हमेशा चुनावों में गुमराह रहती है और कोई न कोई टोपीधारी, सफ़ेद बगुला मौका देख के चौका मार जाता है और जनता हर बार ख्याली पुलाव खाकर अगले पांच साल के लिए फिर सो जाती है |

इस आधुनिक राजनीति ने आज व्यक्तिगत राजनीति का रूप ले लिया है हालांकि नारे जरुर ऐसे लगते है कि “अबकी बार ये सरकार, अबकी बार वो सरकार” मगर हर बार सरकार बेकार-ऐसा जनता हर बार, बार-बार कहती है | समसामयिक तौर पर कुल मिलाकर इस आधुनिक राजनीति के परिदृश्य को शब्दों में परिभाषित नहीं किया जा सकता और ना ही किसी निष्कर्ष पर पहुंचा जा सकता है, एक लेखक होने के नाते बस इतना कहना “Feel Good हो कि भय्या ये तो मदारी का खेल है, कभी बंदर को देखो, कभी मदारी को देखो और पैसा फेंको तमाशा देखो |


शब्द्नाद -@ज्ञात

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Friday 14 October 2016

समाज में महिलाओं का ये कैसा विशेष वर्ग?

women and girls having alcohol and smoking
हमारी भारतीय संस्कृति में जहां एक तरफ महिलाओं के विकास का मुद्दा अहम् है,वहीँ दुसरी तरफ पाश्चात्य सभ्यता के पुरजोर तांडव करने से महिलाओं का विकास किस दिशा में हो रहा है,यह बेहद पेचीदा और गहन विचार का विषय है |

आज के इस आधुनिक युग में जहां महिलाओं के लिए सरकार हो या समाज दोनों ही नारी शक्ति के विकास और समानता के लिए नई-नई योजनाओं को क्रियान्वित कर रहे है वहीँ एक प्रश्न ज़हन में समुंद्र के तूफ़ान सा उठता है कि क्या महिलायें सही दिशा में प्रगति कर रही है ? यह प्रश्न सम्पूर्ण महिला वर्ग के लिए ठीक नहीं होगा | इस प्रश्न से मेरा तात्पर्य समाज में महिलाओं के उस “विशेष वर्ग”से है जो आज सिर्फ पाश्चात्य सभ्यता को सर्वस्व समझ बैठा है | 

वर्तमान दौर में समाज में महिलायें आज घर से बाहर निकल कर नौकरी कर रही है,कामकाज कर रही है,जीवन यापन के नए आयाम खोज रही है यह समाज के लिए सार्थक हर्ष का विषय है कि – “नारी तू नारायणी” और भारतीय संस्कृति के जिवंत होने का वास्तविक प्रमाण |


मगर पाश्चात्य संस्कृति के बढ़ते हुए इरादों से तो एसा लगता है जैसे नारी आजादी के नाम पर ये कैसी ज़िंदगी जी रही है| समाज में नारी के इस विशेष वर्ग में आज की नारी बीड़ी-सिगरेट,तम्बाकू,दारू गांजा,चरस और पता नहीं कितने प्रकार के नशे की और तेजी से बड़ रही है | 

समाज में दिखावे के नाम पर अश्लीलता,अय्याशी और हेवानियत दिखाई जा रही है | स्वयं नारी वर्ग को इस विशेष वर्ग की और ध्यान देने के जरुरत है, क्यूंकि इस विशेष वर्ग की हर नारी किसी न किसी की माँ है,किसी न किसी की बहन है और किसी न किसी की पत्नी है | 

अगर हमने यानी समाज और सरकार ने आज नारी के इस विशेष वर्ग की और विशेष ध्यान नहीं दिया तो आज की ये विशेष वर्ग की नारी इस क्षेत्र में मीलों दूर निकल जायेगी जो कि समाज के लिए हितकारी नहीं होगा | 

समाज में महिलाओं का ये कैसा विशेष वर्ग?

women and girls having alcohol and smoking
हमारी भारतीय संस्कृति में जहां एक तरफ महिलाओं के विकास का मुद्दा अहम् है,वहीँ दुसरी तरफ पाश्चात्य सभ्यता के पुरजोर तांडव करने से महिलाओं का विकास किस दिशा में हो रहा है,यह बेहद पेचीदा और गहन विचार का विषय है |

आज के इस आधुनिक युग में जहां महिलाओं के लिए सरकार हो या समाज दोनों ही नारी शक्ति के विकास और समानता के लिए नई-नई योजनाओं को क्रियान्वित कर रहे है वहीँ एक प्रश्न ज़हन में समुंद्र के तूफ़ान सा उठता है कि क्या महिलायें सही दिशा में प्रगति कर रही है ? यह प्रश्न सम्पूर्ण महिला वर्ग के लिए ठीक नहीं होगा | इस प्रश्न से मेरा तात्पर्य समाज में महिलाओं के उस “विशेष वर्ग”से है जो आज सिर्फ पाश्चात्य सभ्यता को सर्वस्व समझ बैठा है | 

वर्तमान दौर में समाज में महिलायें आज घर से बाहर निकल कर नौकरी कर रही है,कामकाज कर रही है,जीवन यापन के नए आयाम खोज रही है यह समाज के लिए सार्थक हर्ष का विषय है कि – “नारी तू नारायणी” और भारतीय संस्कृति के जिवंत होने का वास्तविक प्रमाण |


मगर पाश्चात्य संस्कृति के बढ़ते हुए इरादों से तो एसा लगता है जैसे नारी आजादी के नाम पर ये कैसी ज़िंदगी जी रही है| समाज में नारी के इस विशेष वर्ग में आज की नारी बीड़ी-सिगरेट,तम्बाकू,दारू गांजा,चरस और पता नहीं कितने प्रकार के नशे की और तेजी से बड़ रही है | 

समाज में दिखावे के नाम पर अश्लीलता,अय्याशी और हेवानियत दिखाई जा रही है | स्वयं नारी वर्ग को इस विशेष वर्ग की और ध्यान देने के जरुरत है, क्यूंकि इस विशेष वर्ग की हर नारी किसी न किसी की माँ है,किसी न किसी की बहन है और किसी न किसी की पत्नी है | 

अगर हमने यानी समाज और सरकार ने आज नारी के इस विशेष वर्ग की और विशेष ध्यान नहीं दिया तो आज की ये विशेष वर्ग की नारी इस क्षेत्र में मीलों दूर निकल जायेगी जो कि समाज के लिए हितकारी नहीं होगा | 

समाज में महिलाओं का ये कैसा विशेष वर्ग?

women and girls having alcohol and smoking
हमारी भारतीय संस्कृति में जहां एक तरफ महिलाओं के विकास का मुद्दा अहम् है,वहीँ दुसरी तरफ पाश्चात्य सभ्यता के पुरजोर तांडव करने से महिलाओं का विकास किस दिशा में हो रहा है,यह बेहद पेचीदा और गहन विचार का विषय है |

आज के इस आधुनिक युग में जहां महिलाओं के लिए सरकार हो या समाज दोनों ही नारी शक्ति के विकास और समानता के लिए नई-नई योजनाओं को क्रियान्वित कर रहे है वहीँ एक प्रश्न ज़हन में समुंद्र के तूफ़ान सा उठता है कि क्या महिलायें सही दिशा में प्रगति कर रही है ? यह प्रश्न सम्पूर्ण महिला वर्ग के लिए ठीक नहीं होगा | इस प्रश्न से मेरा तात्पर्य समाज में महिलाओं के उस “विशेष वर्ग”से है जो आज सिर्फ पाश्चात्य सभ्यता को सर्वस्व समझ बैठा है | 

वर्तमान दौर में समाज में महिलायें आज घर से बाहर निकल कर नौकरी कर रही है,कामकाज कर रही है,जीवन यापन के नए आयाम खोज रही है यह समाज के लिए सार्थक हर्ष का विषय है कि – “नारी तू नारायणी” और भारतीय संस्कृति के जिवंत होने का वास्तविक प्रमाण |


मगर पाश्चात्य संस्कृति के बढ़ते हुए इरादों से तो एसा लगता है जैसे नारी आजादी के नाम पर ये कैसी ज़िंदगी जी रही है| समाज में नारी के इस विशेष वर्ग में आज की नारी बीड़ी-सिगरेट,तम्बाकू,दारू गांजा,चरस और पता नहीं कितने प्रकार के नशे की और तेजी से बड़ रही है | 

समाज में दिखावे के नाम पर अश्लीलता,अय्याशी और हेवानियत दिखाई जा रही है | स्वयं नारी वर्ग को इस विशेष वर्ग की और ध्यान देने के जरुरत है, क्यूंकि इस विशेष वर्ग की हर नारी किसी न किसी की माँ है,किसी न किसी की बहन है और किसी न किसी की पत्नी है | 

अगर हमने यानी समाज और सरकार ने आज नारी के इस विशेष वर्ग की और विशेष ध्यान नहीं दिया तो आज की ये विशेष वर्ग की नारी इस क्षेत्र में मीलों दूर निकल जायेगी जो कि समाज के लिए हितकारी नहीं होगा | 

Wednesday 12 October 2016

Kishor kumar death anniversary: किशोर दा ने क्यों की थी चार शादियाँ?

kishor kumar death anniversary 

जिन्दगी एक सफ़र है सुहाना...यहाँ कल क्या हो किसने जाना...
जी हाँ फिल्म का नाम अंदाज़, सन 1971 में बनी इस फिल्म में किशोर कुमार ने इस गाने को अपने बिंदास और मधुर सुरों में पिरोया था. किशोर कुमार चाहे आज हमारे साथ नहीं है मगर उनकी मधुर आवाज हमारे बीच अमर हो गई है.
  
आज किशोर दा की पुण्यतिथि है, उनकी इस पुण्यतिथि पर Freaky Funtoosh Team की ओर से श्रद्धांजलि. आज हम आपको कुछ ऐसे अनछुए पहलुओं से रूबरू कराने जा रहे है जो उनकी जिन्दगी और करियर से जुड़े है-

किशोर कुमार की मृत्यु 13 अक्टूबर सन 1987 को दिल का दौरा पड़ने से हुई थी.  
किशोर कुमार की डेथ उनके भाई अशोक कुमार के बर्थडे वाले दिन हुई थी.
किशोर कुमार खंडवा शहर मध्य प्रदेश के रहने वाले थे.
महज बारह वर्ष की उम्र में किशोर दा ने संगीत में महारत हासिल कर ली थी.
उनको रेडियो पर बजने वाले गानों पर नाचना बहुत पसंद था.
फ़िल्मी गानों की पंक्तियों को दाएं से बाएँ गाने में किशोर कुमार ने महारत हासिल कर ली थी.
जब भी कोई उनका नाम पूछता तो वे कहते- रशोकि रमाकु नाम है मेरा.
गांगुली परिवार में जन्मे किशोर दा की माँ का नाम गौरीदेवी और पिता का नाम कुंजीलाल गांगुली था.
किशोर कुमार अपने भाई बहनों में सबसे छोटे थे और उनके पिताजी वकील थे.
किशोर दा ने शिकारी फिल्म(1946) से अपने फ़िल्मी करियर की शुरुआत की थी.
किशोर कुमार ने अपने जीवन काल में चार शादियाँ की थी फिर भी वे प्रेम के प्यासे ही रहे.
किशोर कुमार को मुंबई की पार्टियों में शामिल होना कभी पसंद नहीं रहा.
उनकी आखरी इच्छा के अनुसार ही उनका खंडवा में अंतिम संस्कार हुआ.
किशोर कुमार को उनके गानों के लिए आठ बार फिल्म फेयर अवार्ड मिल चूका है.
उन्होंने लगभग 600 से भी अधिक हिंदी फिल्मो में अपना संगीत दिया है.
किशोर दा ने बंगला, मराठी, आसामी, गुजराती, कन्नड़, भोजपुरी और उड़िया आदि फिल्मो में भी अपना संगीत दिया है. 
      
क्रिस्चियन कॉलेज इंदौर का किस्सा –
पांच रुपइया बारह आना... गाना तो आपने सुना भी होगा और गुनगुनाया भी होगा, वास्तव में इस गाने के पीछे बड़ी ही दिलचस्प कहानी है. किशोर कुमार इंदौर के क्रिस्चियन कॉलेज में अपनी पढाई कर रहे थे, एक दिन कॉलेज के कैंटीन में पांच रुपये बारह आना की उधारी हो गई थी, जब भी कैंटीन वाला पैसे मांगता तो वे टेबल बजा-बजा कर नई-नई धुन निकाला करते थे और फिर उन्होंने इसी तर्ज पर यह गाना बनाया.  
किशोर दा के सदाबहार गीत-

                             Source-You Tube Prem Gantha



         

Kishor kumar death anniversary: किशोर दा ने क्यों की थी चार शादियाँ?

kishor kumar death anniversary 

जिन्दगी एक सफ़र है सुहाना...यहाँ कल क्या हो किसने जाना...
जी हाँ फिल्म का नाम अंदाज़, सन 1971 में बनी इस फिल्म में किशोर कुमार ने इस गाने को अपने बिंदास और मधुर सुरों में पिरोया था. किशोर कुमार चाहे आज हमारे साथ नहीं है मगर उनकी मधुर आवाज हमारे बीच अमर हो गई है.
  
आज किशोर दा की पुण्यतिथि है, उनकी इस पुण्यतिथि पर Freaky Funtoosh Team की ओर से श्रद्धांजलि. आज हम आपको कुछ ऐसे अनछुए पहलुओं से रूबरू कराने जा रहे है जो उनकी जिन्दगी और करियर से जुड़े है-

किशोर कुमार की मृत्यु 13 अक्टूबर सन 1987 को दिल का दौरा पड़ने से हुई थी.  
किशोर कुमार की डेथ उनके भाई अशोक कुमार के बर्थडे वाले दिन हुई थी.
किशोर कुमार खंडवा शहर मध्य प्रदेश के रहने वाले थे.
महज बारह वर्ष की उम्र में किशोर दा ने संगीत में महारत हासिल कर ली थी.
उनको रेडियो पर बजने वाले गानों पर नाचना बहुत पसंद था.
फ़िल्मी गानों की पंक्तियों को दाएं से बाएँ गाने में किशोर कुमार ने महारत हासिल कर ली थी.
जब भी कोई उनका नाम पूछता तो वे कहते- रशोकि रमाकु नाम है मेरा.
गांगुली परिवार में जन्मे किशोर दा की माँ का नाम गौरीदेवी और पिता का नाम कुंजीलाल गांगुली था.
किशोर कुमार अपने भाई बहनों में सबसे छोटे थे और उनके पिताजी वकील थे.
किशोर दा ने शिकारी फिल्म(1946) से अपने फ़िल्मी करियर की शुरुआत की थी.
किशोर कुमार ने अपने जीवन काल में चार शादियाँ की थी फिर भी वे प्रेम के प्यासे ही रहे.
किशोर कुमार को मुंबई की पार्टियों में शामिल होना कभी पसंद नहीं रहा.
उनकी आखरी इच्छा के अनुसार ही उनका खंडवा में अंतिम संस्कार हुआ.
किशोर कुमार को उनके गानों के लिए आठ बार फिल्म फेयर अवार्ड मिल चूका है.
उन्होंने लगभग 600 से भी अधिक हिंदी फिल्मो में अपना संगीत दिया है.
किशोर दा ने बंगला, मराठी, आसामी, गुजराती, कन्नड़, भोजपुरी और उड़िया आदि फिल्मो में भी अपना संगीत दिया है. 
      
क्रिस्चियन कॉलेज इंदौर का किस्सा –
पांच रुपइया बारह आना... गाना तो आपने सुना भी होगा और गुनगुनाया भी होगा, वास्तव में इस गाने के पीछे बड़ी ही दिलचस्प कहानी है. किशोर कुमार इंदौर के क्रिस्चियन कॉलेज में अपनी पढाई कर रहे थे, एक दिन कॉलेज के कैंटीन में पांच रुपये बारह आना की उधारी हो गई थी, जब भी कैंटीन वाला पैसे मांगता तो वे टेबल बजा-बजा कर नई-नई धुन निकाला करते थे और फिर उन्होंने इसी तर्ज पर यह गाना बनाया.  
किशोर दा के सदाबहार गीत-

                             Source-You Tube Prem Gantha



         
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