महज चेचिस पर ही झुर्रियों ने ली अंगड़ाई है,,,,,,,
महज हाड़-मांस में ही कल-पुर्जों की हुई घिसाई है ,,,,,,,
बाखुदा मोहब्बत तो आज भी कतरे-कतरे में उफान पर है ,,,,,,,,
इस नामुराद जमाने ने हम पे बुड़ापे की सिल लगाईं है,,,,,,,
यूँ तो तज़ुर्बा जवानी का बेशुमार रहा इस ख़ादिम को,,,,,,
यूँ तो हुस्न की अनारकलियों ने दिलो-जान से चाहा इस सलीम को ,,,,,,,
लेकिन अब इन बदनों की हवस से दिलों की हुई रुसवाई है ,,,,,,,
हम अपने इश्क की मिसाल क्या दे तुमको ऐ जहां वालों,,,,,,,
हम अपने हुनर को कैसे सोंप दे तुमको ऐ जहां वालों ,,,,,,,,
डूबकर किया है इश्क ये मुलाक़ात उसी की सच्चाई है ,,अरुण "अज्ञात"
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