उन्हें मोहब्बत क्या हुई
वो इठला कर चलने लगे
खुद को सजाने संवारने में
आइनों पे आईने बदलने लगे
अब आसमां में चाँद भी देखो
सोच समझ कर निकलने लगे
उन्हें मोहब्बत क्या हुई
वो इठला कर चलने लगे |
फक्र नहीं ये फ़िक्र की बात है
कि अब दीवाने-परवाने उन पर
बेइनतहां बेख़ौफ़ मचलने लगे
कैसे जवानी दीवानी होती है ?
कैसे आग जलकर पानी होती है ?
देखो आँखों में ख्वाब कैसे पलने लगे
पहले मिलने को बेताब रहते थे
अब ना मिलन के बहाने ढूंडने लगे
उन्हें मोहब्बत क्या हुई
वो इठला कर चलने लगे |
राहों में,निगाहों में जैसे
खुशबुओं के गुलखाने खुल गए
जब से वो फुल से खिलने लगे
उन्हें मोहब्बत क्या हुई ......अरुण "अज्ञात" पंचोली
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