अनल बर्फ के आंसू जरुर घोलेगी,
समीर को न गिला न शिकवा होगा,
ना बदरिया का कोई सिलसिला होगा |
जब ये कायनात डग-मग डोलेगी,
जब ये कायनात डग-मग डोलेगी,
फुर से चिड़िया दाना चुगकर,
खुले आसमां में छम-छम तेरेगी,
तुम ताकते रहना नदी किनारे,
मछली सारे रजिया के राज खोलेगी |
कलियों की कहानी पुरानी हो गई,
अब गलियों में जवानी दीवानी हो गई,
शबनम से अब हाला नहीं भरेगी,
शराबियों से अब शराब नहीं डरेगी |
तुम आइना क्यों देखते हो-
महबूबा युहीं नहीं तुम पर मरेगी,
थोड़ी घड़ियाँ थामकर चलो यारों,
इनकी कदम-कदम पर जरुरत पड़ेगी |
एक दिन परछाइयां जरुर बोलेगी,
अनल बर्फ के आंसू जरुर घोलेगी !!!
.....अरुण "अज्ञात"
No comments:
Post a Comment