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Thursday, 14 January 2016

सिसकती साँसों से पूछो,मेरा क्या है?

सिसकती साँसों सेपूछो,
वक्त का पहराक्या है ?
रजनी लपेटे सफेदीमें,
शशि में इतना,
गहरा क्या है?
है भान नभके,
भानु प्रताप को,
लबों पे लालिमालिए,
सवेरा क्या है?
क्यूँ गुलशन करता,
नाज इतना शुलोंपे,
है एहसास गुलोंको,
भंवरों का पहराक्या है?
क्षितिज को साहिलोंसे मिलाती,
सागर पे लहराती,
सरगम-सी लहरोंका,
बसेरा क्या है?
माटी से माटीतक का सफ़र,
जानता है सिर्फवो कुम्हार
कि इस खोखलेखिलौने का,

चेहरा क्या है?

सिसकती साँसों से पूछो,मेरा क्या है?

सिसकती साँसों सेपूछो,
वक्त का पहराक्या है ?
रजनी लपेटे सफेदीमें,
शशि में इतना,
गहरा क्या है?
है भान नभके,
भानु प्रताप को,
लबों पे लालिमालिए,
सवेरा क्या है?
क्यूँ गुलशन करता,
नाज इतना शुलोंपे,
है एहसास गुलोंको,
भंवरों का पहराक्या है?
क्षितिज को साहिलोंसे मिलाती,
सागर पे लहराती,
सरगम-सी लहरोंका,
बसेरा क्या है?
माटी से माटीतक का सफ़र,
जानता है सिर्फवो कुम्हार
कि इस खोखलेखिलौने का,

चेहरा क्या है?
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