Thursday 6 October 2016

उड़ान पंखो से नही बल्कि होसलो से होती है



बच्चो के हाथ मे जैसे ही कोई नए किताब आती है |वे झट से उसे उलटना –पलटना शुरू कर देते है |उनमे एक उतावलापन होता है |चित्र निहारने का ,कविता ओर कहानियो के बारे मे जानने का खेलने-कूदने का आदि बच्चे हर चीज का भरपूर फ़ायदा उठाना चाहते है ।

हमे उन्हे रोकना नहीं चाहिए,क्योंकि कोई भी पक्षी तब तक ही खुश रहता है जब तक कि वह खुले आसमान मे उड़ता रहता है, यदि हम उसे पिंजरे मे बंद कर देंगे तो उसके जीवन की खूबसूरती और उत्साह दोनों ही कम हो जाएंगे । ठीक उसी तरह यदि बच्चे कुछ करना चाहते है किसी नई दिशा मे जाना चाहते है तो हमे उन्हे रोकना नहीं चाहिए | 

अपितु उन्हे आगे बड़ने के लिए प्रेरित करना चाहिए |तभी वे कामियाबी की उचाईयों तक पहुच पाएगे ,ओर जीवन के अद्भुत सत्य को पाएगे |

अत: उड़ान पंखो से नहीं बल्कि होसलो से होती है |आवशकता है तो सिर्फ प्रेरणा  ओर नया कुछ करने की इच्छाशक्ति की |

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