Tuesday, 19 April 2016

कहाँ जाकर प्यास बुझाऊ मै


लेकर अपने सूखे कंठ को
किस दरिया किनारे जाऊं मै,
सूखे-सूखे इन होठों को बताओ,
कहाँ जाकर तरबतर कर आऊं मै |
देखकर पानी पर पापी पॉलिटिक्स,
मन ही नहीं, अरमान भी सुख गए मेरे,
समंदर कर दिया हवाले तुम्हारे,
फिर-भी बूंद-बूंद को तरसते है सारे,
गीली धरती को सुखा बना रहे है,
हो-हल्ला मचाकर, बस जता रहे है,
प्यासों की आँखों में आसुओं का सैलाब ला रहे है |
अनमोल का मोल लगाकर,
कुदरत के अमूल्य तोहफ़े को,
सरे-राह नीलाम कर रहे है,
अब तुही बता ऐ ग़ालिब.... 

“कहाँ जाकर प्यास बुझाऊ मै...??????”


No comments:

Post a Comment

loading...